वाहिगुरू जी का खालसा
वाहिगुरू जी की फतेह

    
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
आसा महला ४ छंत घरु ४ ॥

हरि अम्रित भिंने लोइणा मनु प्रेमि रतंना राम राजे ॥ 
मनु रामि कसवटी लाइआ कंचनु सोविंना ॥ 
गुरमुखि रंगि चलूलिआ मेरा मनु तनो भिंना ॥ 
जनु नानकु मुसकि झकोलिआ सभु जनमु धनु धंना ॥१॥

ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु 
अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
आसा महला १ ॥
वार सलोका नालि सलोक भी महले 
पहिले के लिखे टुंडे अस राजै की धुनी ॥

सलोकु मः १ ॥ 
बलिहारी गुर आपणे दिउहाड़ी सद वार ॥ 
जिनि माणस ते देवते कीए करत न लागी वार ॥१॥ 
महला २ ॥ 
जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार ॥ 
एते चानण होदिआं गुर बिनु घोर अंधार ॥२॥ 
मः १ ॥ 
नानक गुरू न चेतनी मनि आपणै सुचेत ॥ 
छुटे तिल बूआड़ जिउ सुंञे अंदरि खेत ॥ 
खेतै अंदरि छुटिआ कहु नानक सउ नाह ॥ 
फलीअहि फुलीअहि बपुड़े भी तन विचि सुआह ॥३॥ 
पउड़ी ॥ 
आपीन्है आपु साजिओ आपीन्है रचिओ नाउ ॥ 
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ ॥ 
दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ ॥ 
तूं जाणोई सभसै दे लैसहि जिंदु कवाउ ॥ 
करि आसणु डिठो चाउ ॥१॥

(छंत) 
हरि प्रेम बानी मनु मार्या अणियाले अणिया राम राजे ॥ 
जिसु लागी पीर पिरंम की सो जानै जरिया ॥ 
जीवन मुकति सो आखीऐ मरि जीवै मरिया ॥ 
जन नानक सतिगुरु मेलि हरि जगु दुतरु तरिया ॥२॥

सलोकु मः १ ॥ 
सचे तेरे खंड सचे ब्रहमंड ॥ 
सचे तेरे लोअ सचे आकार ॥ 
सचे तेरे करणे सरब बीचार ॥ 
सचा तेरा अमरु सचा दीबाणु ॥ 
सचा तेरा हुकमु सचा फुरमाणु ॥ 
सचा तेरा करमु सचा नीसाणु ॥ 
सचे तुधु आखहि लख करोड़ि ॥ 
सचै सभि ताणि सचै सभि जोरि ॥ 
सची तेरी सिफति सची सालाह ॥ 
सची तेरी कुदरति सचे पातिसाह ॥ 
नानक सचु धिआइनि सचु ॥ 
जो मरि जमे सु कचु निकचु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
वडी वडिआई जा वडा नाउ ॥ 
वडी वडिआई जा सचु निआउ ॥ 
वडी वडिआई जा निहचल थाउ ॥ 
वडी वडिआई जाणै आलाउ ॥ 
वडी वडिआई बुझै सभि भाउ ॥ 
वडी वडिआई जा पुछि न दाति ॥ 
वडी वडिआई जा आपे आपि ॥ 
नानक कार न कथनी जाइ ॥ 
कीता करणा सरब रजाइ ॥२॥ 
महला २ ॥ 
इहु जगु सचै की है कोठड़ी सचे का विचि वासु ॥ 
इकन्हा हुकमि समाइ लए इकन्हा हुकमे करे विणासु ॥ 
इकन्हा भाणै कढि लए इकन्हा माइआ विचि निवासु ॥ 
एव भि आखि न जापई जि किसै आणे रासि ॥ 
नानक गुरमुखि जाणीऐ जा कउ आपि करे परगासु ॥३॥ 
पउड़ी ॥ 
नानक जीअ उपाइ कै लिखि नावै धरमु बहालिआ ॥ 
ओथै सचे ही सचि निबड़ै चुणि वखि कढे जजमालिआ ॥ 
थाउ न पाइनि कूड़िआर मुह काल्है दोजकि चालिआ ॥ 
तेरै नाइ रते से जिणि गए हारि गए सि ठगण वालिआ ॥ 
लिखि नावै धरमु बहालिआ ॥२॥

(छंत) 
हम मूरख मुगध सरणागती मिलु गोविन्द रंगा राम राजे ॥ 
गुरि पूरै हरि पायआ हरि भगति इक मंगा ॥ 
मेरा मनु तनु सबदि विगास्या जपि अनत तरंगा ॥ 
मिलि संत जना हरि पायआ नानक सतसंगा ॥३॥

सलोक मः १ ॥ 
विसमादु नाद विसमादु वेद ॥ 
विसमादु जीअ विसमादु भेद ॥ 
विसमादु रूप विसमादु रंग ॥ 
विसमादु नागे फिरहि जंत ॥ 
विसमादु पउणु विसमादु पाणी ॥ 
विसमादु अगनी खेडहि विडाणी ॥ 
विसमादु धरती विसमादु खाणी ॥ 
विसमादु सादि लगहि पराणी ॥ 
विसमादु संजोगु विसमादु विजोगु ॥ 
विसमादु भुख विसमादु भोगु ॥ 
विसमादु सिफति विसमादु सालाह ॥ 
विसमादु उझड़ विसमादु राह ॥ 
विसमादु नेड़ै विसमादु दूरि ॥ 
विसमादु देखै हाजरा हजूरि ॥ 
वेखि विडाणु रहिआ विसमादु ॥ 
नानक बुझणु पूरै भागि ॥१॥ 
मः १ ॥ 
कुदरति दिसै कुदरति सुणीऐ कुदरति भउ सुख सारु ॥ 
कुदरति पाताली आकासी कुदरति सरब आकारु ॥ 
कुदरति वेद पुराण कतेबा कुदरति सरब वीचारु ॥ 
कुदरति खाणा पीणा पैन्हणु कुदरति सरब पिआरु ॥ 
कुदरति जाती जिनसी रंगी कुदरति जीअ जहान ॥ 
कुदरति नेकीआ कुदरति बदीआ कुदरति मानु अभिमानु ॥ 
कुदरति पउणु पाणी बैसंतरु कुदरति धरती खाकु ॥ 
सभ तेरी कुदरति तूं कादिरु करता पाकी नाई पाकु ॥ 
नानक हुकमै अंदरि वेखै वरतै ताको ताकु ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
आपीन्है भोग भोगि कै होइ भसमड़ि भउरु सिधाइआ ॥ 
वडा होआ दुनीदारु गलि संगलु घति चलाइआ ॥ 
अगै करणी कीरति वाचीऐ बहि लेखा करि समझाइआ ॥ 
थाउ न होवी पउदीई हुणि सुणीऐ किआ रूआइआ ॥ 
मनि अंधै जनमु गवाइआ ॥३॥

(छंत) 
दीन दयाल सुनि बेनती हरि प्रभ हरि रायआ राम राजे ॥ 
हउ मागउ सरनि हरि नाम की हरि हरि मुखि पायआ ॥ 
भगति वछलु हरि बिरदु है हरि लाज रखायआ ॥ 
जनु नानकु सरणागती हरि नामि तरायआ ॥४॥१॥८॥

सलोक मः १ ॥ 
भै विचि पवणु वहै सदवाउ ॥ 
भै विचि चलहि लख दरीआउ ॥ 
भै विचि अगनि कढै वेगारि ॥ 
भै विचि धरती दबी भारि ॥ 
भै विचि इंदु फिरै सिर भारि ॥ 
भै विचि राजा धरम दुआरु ॥ 
भै विचि सूरजु भै विचि चंदु ॥ 
कोह करोड़ी चलत न अंतु ॥ 
भै विचि सिध बुध सुर नाथ ॥ 
भै विचि आडाणे आकास ॥ 
भै विचि जोध महाबल सूर ॥ 
भै विचि आवहि जावहि पूर ॥ 
सगलिआ भउ लिखिआ सिरि लेखु ॥ 
नानक निरभउ निरंकारु सचु एकु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
नानक निरभउ निरंकारु होरि केते राम रवाल ॥ 
केतीआ कंन्ह कहाणीआ केते बेद बीचार ॥ 
केते नचहि मंगते गिड़ि मुड़ि पूरहि ताल ॥ 
बाजारी बाजार महि आइ कढहि बाजार ॥ 
गावहि राजे राणीआ बोलहि आल पताल ॥ 
लख टकिआ के मुंदड़े लख टकिआ के हार ॥ 
जितु तनि पाईअहि नानका से तन होवहि छार ॥ 
गिआनु न गलीई ढूढीऐ कथना करड़ा सारु ॥ 
करमि मिलै ता पाईऐ होर हिकमति हुकमु खुआरु ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
नदरि करहि जे आपणी ता नदरी सतिगुरु पाइआ ॥ 
एहु जीउ बहुते जनम भरमिआ ता सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥ 
सतिगुर जेवडु दाता को नही सभि सुणिअहु लोक सबाइआ ॥ 
सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन्ही विचहु आपु गवाइआ ॥ 
जिनि सचो सचु बुझाइआ ॥४॥

(छंत) 
आसा महला ४ ॥ 
गुरमुखि ढूंढि ढूढेद्या हरि सजनु लधा राम राजे ॥ 
कंचन कायआ कोट गड़ विचि हरि हरि सिधा ॥ 
हरि हरि हीरा रतनु है मेरा मनु तनु विधा ॥ 
धुरि भाग वडे हरि पायआ नानक रसि गुधा ॥१॥

सलोक मः १ ॥ 
घड़ीआ सभे गोपीआ पहर कंन्ह गोपाल ॥ 
गहणे पउणु पाणी बैसंतरु चंदु सूरजु अवतार ॥ 
सगली धरती मालु धनु वरतणि सरब जंजाल ॥ 
नानक मुसै गिआन विहूणी खाइ गइआ जमकालु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
वाइनि चेले नचनि गुर ॥ 
पैर हलाइनि फेरन्हि सिर ॥ 
उडि उडि रावा झाटै पाइ ॥ 
वेखै लोकु हसै घरि जाइ ॥ 
रोटीआ कारणि पूरहि ताल ॥ 
आपु पछाड़हि धरती नालि ॥ 
गावनि गोपीआ गावनि कान्ह ॥ 
गावनि सीता राजे राम ॥ 
निरभउ निरंकारु सचु नामु ॥ 
जा का कीआ सगल जहानु ॥ 
सेवक सेवहि करमि चड़ाउ ॥ 
भिंनी रैणि जिन्हा मनि चाउ ॥ 
सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥ 
नदरी करमि लघाए पारि ॥ 
कोलू चरखा चकी चकु ॥ 
थल वारोले बहुतु अनंतु ॥ 
लाटू माधाणीआ अनगाह ॥ 
पंखी भउदीआ लैनि न साह ॥ 
सूऐ चाड़ि भवाईअहि जंत ॥ 
नानक भउदिआ गणत न अंत ॥ 
बंधन बंधि भवाए सोइ ॥ 
पइऐ किरति नचै सभु कोइ ॥ 
नचि नचि हसहि चलहि से रोइ ॥ 
उडि न जाही सिध न होहि ॥ 
नचणु कुदणु मन का चाउ ॥ 
नानक जिन्ह मनि भउ तिन्हा मनि भाउ ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
नाउ तेरा निरंकारु है नाइ लइऐ नरकि न जाईऐ ॥ 
जीउ पिंडु सभु तिस दा दे खाजै आखि गवाईऐ ॥ 
जे लोड़हि चंगा आपणा करि पुंनहु नीचु सदाईऐ ॥ 
जे जरवाणा परहरै जरु वेस करेदी आईऐ ॥ 
को रहै न भरीऐ पाईऐ ॥५॥

(छंत) 
पंथु दसावा नित खड़ी मुंध जोबनि बाली राम राजे ॥ 
हरि हरि नामु चेताय गुर हरि मारगि चाली ॥ 
मेरै मनि तनि नामु आधारु है हउमै बिखु जाली ॥ 
जन नानक सतिगुरु मेलि हरि हरि मिल्या बनवाली ॥२॥

सलोक मः १ ॥ 
मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥ 
बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥ 
हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥ 
तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥ 
जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥ 
सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥ 
सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥ 
दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥ 
चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥ 
इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥ 
जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥ 
ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥ 
नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥ 
सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
मिटी मुसलमान की पेड़ै पई कुम्हिआर ॥ 
घड़ि भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार ॥ 
जलि जलि रोवै बपुड़ी झड़ि झड़ि पवहि अंगिआर ॥ 
नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणै करतारु ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
बिनु सतिगुर किनै न पाइओ बिनु सतिगुर किनै न पाइआ ॥ 
सतिगुर विचि आपु रखिओनु करि परगटु आखि सुणाइआ ॥ 
सतिगुर मिलिऐ सदा मुकतु है जिनि विचहु मोहु चुकाइआ ॥ 
उतमु एहु बीचारु है जिनि सचे सिउ चितु लाइआ ॥ 
जगजीवनु दाता पाइआ ॥६॥

(छंत) 
गुरमुखि प्यारे आइ मिलु मै चिरी विछुन्ने राम राजे ॥ 
मेरा मनु तनु बहुतु बैराग्या हरि नैन रसि भिन्ने ॥ 
मै हरि प्रभु प्यारा दसि गुरु मिलि हरि मनु मन्ने ॥ 
हउ मूरखु कारै लाईआ नानक हरि कंमे ॥३॥

सलोक मः १ ॥ 
हउ विचि आइआ हउ विचि गइआ ॥ 
हउ विचि जमिआ हउ विचि मुआ ॥ 
हउ विचि दिता हउ विचि लइआ ॥ 
हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ ॥ 
हउ विचि सचिआरु कूड़िआरु ॥ 
हउ विचि पाप पुंन वीचारु ॥ 
हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु ॥ 
हउ विचि हसै हउ विचि रोवै ॥ 
हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै ॥ 
हउ विचि जाती जिनसी खोवै ॥ 
हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा ॥ 
मोख मुकति की सार न जाणा ॥ 
हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ ॥ 
हउमै करि करि जंत उपाइआ ॥ 
हउमै बूझै ता दरु सूझै ॥ 
गिआन विहूणा कथि कथि लूझै ॥ 
नानक हुकमी लिखीऐ लेखु ॥ 
जेहा वेखहि तेहा वेखु ॥१॥ 
महला २ ॥ 
हउमै एहा जाति है हउमै करम कमाहि ॥ 
हउमै एई बंधना फिरि फिरि जोनी पाहि ॥ 
हउमै किथहु ऊपजै कितु संजमि इह जाइ ॥ 
हउमै एहो हुकमु है पइऐ किरति फिराहि ॥ 
हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि ॥ 
किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि ॥ 
नानकु कहै सुणहु जनहु इतु संजमि दुख जाहि ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
सेव कीती संतोखीईजिन्ही सचो सचु धिआइआ ॥ 
ओन्ही मंदै पैरु न रखिओ करि सुक्रितु धरमु कमाइआ ॥ 
ओन्ही दुनीआ तोड़े बंधना अंनु पाणी थोड़ा खाइआ ॥ 
तूं बखसीसी अगला नित देवहि चड़हि सवाइआ ॥ 
वडिआई वडा पाइआ ॥७॥

(छंत) 
गुर अंमृत भिन्नी देहुरी अंमृतु बुरके राम राजे ॥ 
जिना गुरबानी मनि भाईआ अंमृति छकि छके ॥ 
गुर तुठै हरि पायआ चूके धक धके ॥ 
हरि जनु हरि हरि होया नानकु हरि इके ॥४॥२॥९॥

सलोक मः १ ॥ 
पुरखां बिरखां तीरथां तटां मेघां खेतांह ॥ 
दीपां लोआं मंडलां खंडां वरभंडांह ॥ 
अंडज जेरज उतभुजां खाणी सेतजांह ॥ 
सो मिति जाणै नानका सरां मेरां जंताह ॥ 
नानक जंत उपाइ कै समाले सभनाह ॥ 
जिनि करतै करणा कीआ चिंता भि करणी ताह ॥ 
सो करता चिंता करे जिनि उपाइआ जगु ॥ 
तिसु जोहारी सुअसति तिसु तिसु दीबाणु अभगु ॥ 
नानक सचे नाम बिनु किआ टिका किआ तगु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
लख नेकीआ चंगिआईआ लख पुंना परवाणु ॥ 
लख तप उपरि तीरथां सहज जोग बेबाण ॥ 
लख सूरतण संगराम रण महि छुटहि पराण ॥ 
लख सुरती लख गिआन धिआन पड़ीअहि पाठ पुराण ॥ 
जिनि करतै करणा कीआ लिखिआ आवण जाणु ॥ 
नानक मती मिथिआ करमु सचा नीसाणु ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
सचा साहिबु एकु तूं जिनि सचो सचु वरताइआ ॥ 
जिसु तूं देहि तिसु मिलै सचु ता तिन्ही सचु कमाइआ ॥ 
सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन्ह कै हिरदै सचु वसाइआ ॥ 
मूरख सचु न जाणन्ही मनमुखी जनमु गवाइआ ॥ 
विचि दुनीआ काहे आइआ ॥८॥

(छंत)
आसा महला ४ ॥ 
हरि अंमृत भगति भंडार है गुर सतिगुर पासे राम राजे ॥ 
गुरु सतिगुरु सचा साहु है सिख देइ हरि रासे ॥ 
धनु धन्नु वणजारा वणजु है गुरु साहु साबासे ॥ 
जनु नानकु गुरु तिनी पायआ 
जिन धुरि लिखतु लिलाटि लिखासे ॥१॥

सलोकु मः १ ॥ 
पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ ॥ 
पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात ॥ 
पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास ॥ 
पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास ॥ 
नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख ॥१॥ 
मः १ ॥ 
लिखि लिखि पड़िआ ॥ 
तेता कड़िआ ॥ 
बहु तीरथ भविआ ॥ 
तेतो लविआ ॥ 
बहु भेख कीआ देही दुखु दीआ ॥ 
सहु वे जीआ अपणा कीआ ॥ 
अंनु न खाइआ सादु गवाइआ ॥ 
बहु दुखु पाइआ दूजा भाइआ ॥ 
बसत्र न पहिरै ॥ 
अहिनिसि कहरै ॥ 
मोनि विगूता ॥ 
किउ जागै गुर बिनु सूता ॥ 
पग उपेताणा ॥ 
अपणा कीआ कमाणा ॥ 
अलु मलु खाई सिरि छाई पाई ॥ 
मूरखि अंधै पति गवाई ॥ 
विणु नावै किछु थाइ न पाई ॥ 
रहै बेबाणी मड़ी मसाणी ॥ 
अंधु न जाणै फिरि पछुताणी ॥ 
सतिगुरु भेटे सो सुखु पाए ॥ 
हरि का नामु मंनि वसाए ॥ 
नानक नदरि करे सो पाए ॥ 
आस अंदेसे ते निहकेवलु हउमै सबदि जलाए ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
भगत तेरै मनि भावदे दरि सोहनि कीरति गावदे ॥ 
नानक करमा बाहरे दरि ढोअ न लहन्ही धावदे ॥ 
इकि मूलु न बुझन्हि आपणा अणहोदा आपु गणाइदे ॥ 
हउ ढाढी का नीच जाति होरि उतम जाति सदाइदे ॥ 
तिन्ह मंगा जि तुझै धिआइदे ॥९॥

(छंत) 
सचु साहु हमारा तूं धनी सभु जगतु वणजारा राम राजे ॥ 
सभ भांडे तुधै साज्या विचि वसतु हरि थारा ॥ 
जो पावह भांडे विचि वसतु सा 
निकलै क्या कोयी करे वेचारा ॥ 
जन नानक कउ हरि बखस्या हरि भगति भंडारा ॥२॥

सलोकु मः १ ॥ 
कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु ॥ 
कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु ॥ 
कूड़ु सुइना कूड़ु रुपा कूड़ु पैन्हणहारु ॥ 
कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु ॥ 
कूड़ु मीआ कूड़ु बीबी खपि होए खारु ॥ 
कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु ॥ 
किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु ॥ 
कूड़ु मिठा कूड़ु माखिउ कूड़ु डोबे पूरु ॥ 
नानकु वखाणै बेनती तुधु बाझु कूड़ो कूड़ु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
सचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइ ॥ 
कूड़ की मलु उतरै तनु करे हछा धोइ ॥ 
सचु ता परु जाणीऐ जा सचि धरे पिआरु ॥ 
नाउ सुणि मनु रहसीऐ ता पाए मोख दुआरु ॥ 
सचु ता परु जाणीऐ जा जुगति जाणै जीउ ॥ 
धरति काइआ साधि कै विचि देइ करता बीउ ॥ 
सचु ता परु जाणीऐ जा सिख सची लेइ ॥ 
दइआ जाणै जीअ की किछु पुंनु दानु करेइ ॥ 
सचु तां परु जाणीऐ जा आतम तीरथि करे निवासु ॥ 
सतिगुरू नो पुछि कै बहि रहै करे निवासु ॥ 
सचु सभना होइ दारू पाप कढै धोइ ॥ 
नानकु वखाणै बेनती जिन सचु पलै होइ ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
दानु महिंडा तली खाकु जे मिलै त मसतकि लाईऐ ॥ 
कूड़ा लालचु छडीऐ होइ इक मनि अलखु धिआईऐ ॥ 
फलु तेवेहो पाईऐ जेवेही कार कमाईऐ ॥ 
जे होवै पूरबि लिखिआ ता धूड़ि तिन्हा दी पाईऐ ॥ 
मति थोड़ी सेव गवाईऐ ॥१०॥

(छंत) 
हम क्या गुन तेरे विथरह सुआमी तूं अपर अपारो राम राजे ॥ 
हरि नामु सालाहह दिनु राति एहा आस आधारो ॥ 
हम मूरख किछूय न जाणहा किव पावह पारो ॥ 
जनु नानकु हरि का दासु है हरि दास पनेहारो ॥३॥

सलोकु मः १ ॥ 
सचि कालु कूड़ु वरतिआ कलि कालख बेताल ॥ 
बीउ बीजि पति लै गए अब किउ उगवै दालि ॥ 
जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥ 
नानक पाहै बाहरा कोरै रंगु न सोइ ॥ 
भै विचि खु्मबि चड़ाईऐ सरमु पाहु तनि होइ ॥ 
नानक भगती जे रपै कूड़ै सोइ न कोइ ॥१॥ 
मः १ ॥ 
लबु पापु दुइ राजा महता कूड़ु होआ सिकदारु ॥ 
कामु नेबु सदि पुछीऐ बहि बहि करे बीचारु ॥ 
अंधी रयति गिआन विहूणी भाहि भरे मुरदारु ॥ 
गिआनी नचहि वाजे वावहि रूप करहि सीगारु ॥ 
ऊचे कूकहि वादा गावहि जोधा का वीचारु ॥ 
मूरख पंडित हिकमति हुजति संजै करहि पिआरु ॥ 
धरमी धरमु करहि गावावहि मंगहि मोख दुआरु ॥ 
जती सदावहि जुगति न जाणहि छडि बहहि घर बारु ॥ 
सभु को पूरा आपे होवै घटि न कोई आखै ॥ 
पति परवाणा पिछै पाईऐ ता नानक तोलिआ जापै ॥२॥ 
मः १ ॥ 
वदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइ ॥ 
सभनी छाला मारीआ करता करे सु होइ ॥ 
अगै जाति न जोरु है अगै जीउ नवे ॥ 
जिन की लेखै पति पवै चंगे सेई केइ ॥३॥ 
पउड़ी ॥ 
धुरि करमु जिना कउ तुधु पाइआ ता तिनी खसमु धिआइआ ॥ 
एना जंता कै वसि किछु नाही तुधु वेकी जगतु उपाइआ ॥ 
इकना नो तूं मेलि लैहि इकि आपहु तुधु खुआइआ ॥ 
गुर किरपा ते जाणिआ जिथै तुधु आपु बुझाइआ ॥ 
सहजे ही सचि समाइआ ॥११॥

(छंत) 
ज्यु भावै त्यु राखि लै हम सरनि प्रभ आए राम राजे ॥ 
हम भूलि विगाड़ह दिनसु राति हरि लाज रखाए ॥ 
हम बारिक तूं गुरु पिता है दे मति समझाए ॥ 
जनु नानकु दासु हरि कांढ्या हरि पैज रखाए ॥४॥३॥१०॥

सलोकु मः १ ॥ 
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥ 
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥ 
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥ 
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥ 
जाति महि जोति जोति महि जाता 
अकल कला भरपूरि रहिआ ॥ 
तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ 
जिनि कीती सो पारि पइआ ॥ 
कहु नानक करते कीआ बाता जो 
किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥ 
मः २ ॥ 
जोग सबदं गिआन सबदं बेद सबदं ब्राहमणह ॥ 
खत्री सबदं सूर सबदं सूद्र सबदं परा क्रितह ॥ 
सरब सबदं एक सबदं जे को जाणै भेउ ॥ 
नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥३॥ 
मः २ ॥ 
एक क्रिसनं सरब देवा देव देवा त आतमा ॥ 
आतमा बासुदेवस्यि जे को जाणै भेउ ॥ 
नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥४॥ 
मः १ ॥ 
कु्मभे बधा जलु रहै जल बिनु कु्मभु न होइ ॥ 
गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥ 
पउड़ी ॥ 
पड़िआ होवै गुनहगारु ता ओमी साधु न मारीऐ ॥ 
जेहा घाले घालणा तेवेहो नाउ पचारीऐ ॥ 
ऐसी कला न खेडीऐ जितु दरगह गइआ हारीऐ ॥ 
पड़िआ अतै ओमीआ वीचारु अगै वीचारीऐ ॥ 
मुहि चलै सु अगै मारीऐ ॥१२॥

(छंत) 
आसा महला ४ ॥ 
जिन मसतकि धुरि हरि लिख्या 
तिना सतिगुरु मिल्या राम राजे ॥ 
अग्यानु अंधेरा कट्या गुर ग्यानु घटि बल्या ॥ 
हरि लधा रतनु पदारथो फिरि बहुड़ि न चल्या ॥ 
जन नानक नामु आराध्या आराधि हरि मिल्या ॥१॥

सलोकु मः १ ॥ 
नानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहु ॥ 
जुगु जुगु फेरि वटाईअहि गिआनी बुझहि ताहि ॥ 
सतजुगि रथु संतोख का धरमु अगै रथवाहु ॥ 
त्रेतै रथु जतै का जोरु अगै रथवाहु ॥ 
दुआपुरि रथु तपै का सतु अगै रथवाहु ॥ 
कलजुगि रथु अगनि का कूड़ु अगै रथवाहु ॥१॥ 
मः १ ॥ 
साम कहै सेत्मबरु सुआमी सच महि आछै साचि रहे ॥ 
सभु को सचि समावै ॥ 
रिगु कहै रहिआ भरपूरि ॥ 
राम नामु देवा महि सूरु ॥ 
नाइ लइऐ पराछत जाहि ॥ 
नानक तउ मोखंतरु पाहि ॥ 
जुज महि जोरि छली चंद्रावलि कान्ह क्रिसनु जादमु भइआ ॥ 
पारजातु गोपी लै आइआ बिंद्राबन महि रंगु कीआ ॥ 
कलि महि बेदु अथरबणु हूआ नाउ खुदाई अलहु भइआ ॥ 
नील बसत्र ले कपड़े पहिरे तुरक पठाणी अमलु कीआ ॥ 
चारे वेद होए सचिआर ॥ 
पड़हि गुणहि तिन्ह चार वीचार ॥ 
भाउ भगति करि नीचु सदाए ॥ 
तउ नानक मोखंतरु पाए ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
सतिगुर विटहु वारिआ जितु मिलिऐ खसमु समालिआ ॥ 
जिनि करि उपदेसु गिआन अंजनु 
दीआ इन्ही नेत्री जगतु निहालिआ ॥ 
खसमु छोडि दूजै लगे डुबे से वणजारिआ ॥ 
सतिगुरू है बोहिथा विरलै किनै वीचारिआ ॥ 
करि किरपा पारि उतारिआ ॥१३॥

(छंत) 
जिनी ऐसा हरि नामु न चेत्यो से 
काहे जगि आए राम राजे ॥ 
इहु मानस जनमु दुलंभु है नाम बिना बिरथा सभु जाए ॥ 
हुनि वतै हरि नामु न बीज्यो अगै भुखा क्या खाए ॥ 
मनमुखा नो फिरि जनमु है नानक हरि भाए ॥२॥

सलोकु मः १ ॥ 
सिमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचु ॥ 
ओइ जि आवहि आस करि जाहि निरासे कितु ॥ 
फल फिके फुल बकबके कमि न आवहि पत ॥ 
मिठतु नीवी नानका गुण चंगिआईआ ततु ॥ 
सभु को निवै आप कउ पर कउ निवै न कोइ ॥ 
धरि ताराजू तोलीऐ निवै सु गउरा होइ ॥ 
अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि ॥ 
सीसि निवाइऐ किआ थीऐ जा रिदै कुसुधे जाहि ॥१॥ 
मः १ ॥ 
पड़ि पुसतक संधिआ बादं ॥ 
सिल पूजसि बगुल समाधं ॥ 
मुखि झूठ बिभूखण सारं ॥ 
त्रैपाल तिहाल बिचारं ॥ 
गलि माला तिलकु लिलाटं ॥ 
दुइ धोती बसत्र कपाटं ॥ 
जे जाणसि ब्रहमं करमं ॥ 
सभि फोकट निसचउ करमं ॥ 
कहु नानक निहचउ धिआवै ॥ 
विणु सतिगुर वाट न पावै ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
कपड़ु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा ॥ 
मंदा चंगा आपणा आपे ही कीता पावणा ॥ 
हुकम कीए मनि भावदे राहि भीड़ै अगै जावणा ॥ 
नंगा दोजकि चालिआ ता दिसै खरा डरावणा ॥ 
करि अउगण पछोतावणा ॥१४॥

(छंत) 
तूं हरि तेरा सभु को सभि तुधु उपाए राम राजे ॥ 
किछु हाथि किसै दै किछु नाही सभि चलह चलाए ॥ 
जिन तूं मेलह प्यारे से तुधु मिलह जो हरि मनि भाए ॥ 
जन नानक सतिगुरु भेट्या हरि नामि तराए ॥३॥

सलोकु मः १ ॥ 
दइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ॥ 
एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घतु ॥ 
ना एहु तुटै न मलु लगै ना एहु जलै न जाइ ॥ 
धंनु सु माणस नानका जो गलि चले पाइ ॥ 
चउकड़ि मुलि अणाइआ बहि चउकै पाइआ ॥ 
सिखा कंनि चड़ाईआ गुरु ब्राहमणु थिआ ॥ 
ओहु मुआ ओहु झड़ि पइआ वेतगा गइआ ॥१॥
 मः १ ॥ 
लख चोरीआ लख जारीआ लख कूड़ीआ लख गालि ॥ 
लख ठगीआ पहिनामीआ राति दिनसु जीअ नालि ॥ 
तगु कपाहहु कतीऐ बाम्हणु वटे आइ ॥ 
कुहि बकरा रिंन्हि खाइआ सभु को आखै पाइ ॥ 
होइ पुराणा सुटीऐ भी फिरि पाईऐ होरु ॥ 
नानक तगु न तुटई जे तगि होवै जोरु ॥२॥ 
मः १ ॥ 
नाइ मंनिऐ पति ऊपजै सालाही सचु सूतु ॥ 
दरगह अंदरि पाईऐ तगु न तूटसि पूत ॥३॥ 
मः १ ॥ 
तगु न इंद्री तगु न नारी ॥ 
भलके थुक पवै नित दाड़ी ॥
 तगु न पैरी तगु न हथी ॥ 
तगु न जिहवा तगु न अखी ॥ 
वेतगा आपे वतै ॥ 
वटि धागे अवरा घतै ॥ 
लै भाड़ि करे वीआहु ॥ 
कढि कागलु दसे राहु ॥ 
सुणि वेखहु लोका एहु विडाणु ॥ 
मनि अंधा नाउ सुजाणु ॥४॥ 
पउड़ी ॥ 
साहिबु होइ दइआलु किरपा करे ता साई कार कराइसी ॥ 
सो सेवकु सेवा करे जिस नो हुकमु मनाइसी ॥ 
हुकमि मंनिऐ होवै परवाणु ता खसमै का महलु पाइसी ॥ 
खसमै भावै सो करे मनहु चिंदिआ सो फलु पाइसी ॥ 
ता दरगह पैधा जाइसी ॥१५॥

(छंत) 
कोयी गावै रागी नादी बेदी बहु भांति 
करि नही हरि हरि भीजै राम राजे ॥ 
जिना अंतरि कपटु विकारु है तिना रोइ क्या कीजै ॥ 
हरि करता सभु किछु जाणदा सिरि रोग हथु दीजै ॥ 
जिना नानक गुरमुखि हिरदा 
सुधु है हरि भगति हरि लीजै ॥४॥४॥११॥

सलोक मः १ ॥ 
गऊ बिराहमण कउ करु लावहु गोबरि तरणु न जाई ॥ 
धोती टिका तै जपमाली धानु मलेछां खाई ॥ 
अंतरि पूजा पड़हि कतेबा संजमु तुरका भाई ॥ 
छोडीले पाखंडा ॥ 
नामि लइऐ जाहि तरंदा ॥१॥ 
मः १ ॥ 
माणस खाणे करहि निवाज ॥ 
छुरी वगाइनि तिन गलि ताग ॥ 
तिन घरि ब्रहमण पूरहि नाद ॥ 
उन्हा भि आवहि ओई साद ॥ 
कूड़ी रासि कूड़ा वापारु ॥ 
कूड़ु बोलि करहि आहारु ॥ 
सरम धरम का डेरा दूरि ॥ 
नानक कूड़ु रहिआ भरपूरि ॥ 
मथै टिका तेड़ि धोती कखाई ॥ 
हथि छुरी जगत कासाई ॥ 
नील वसत्र पहिरि होवहि परवाणु ॥ 
मलेछ धानु ले पूजहि पुराणु ॥ 
अभाखिआ का कुठा बकरा खाणा ॥ 
चउके उपरि किसै न जाणा ॥ 
दे कै चउका कढी कार ॥ 
उपरि आइ बैठे कूड़िआर ॥ 
मतु भिटै वे मतु भिटै ॥ 
इहु अंनु असाडा फिटै ॥ 
तनि फिटै फेड़ करेनि ॥ 
मनि जूठै चुली भरेनि ॥ 
कहु नानक सचु धिआईऐ ॥ 
सुचि होवै ता सचु पाईऐ ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
चितै अंदरि सभु को वेखि नदरी हेठि चलाइदा ॥ 
आपे दे वडिआईआ आपे ही करम कराइदा ॥ 
वडहु वडा वड मेदनी सिरे सिरि धंधै लाइदा ॥ 
नदरि उपठी जे करे सुलताना घाहु कराइदा ॥ 
दरि मंगनि भिख न पाइदा ॥१६॥

(छंत) आसा महला ४ ॥ 
जिन अंतरि हरि हरि प्रीति है ते 
जन सुघड़ स्याने राम राजे ॥ 
जे बाहरहु भुलि चुकि बोलदे भी खरे हरि भाणे ॥ 
हरि संता नो होरु थाउ नाही हरि मानु निमाणे ॥ 
जन नानक नामु दीबानु है हरि तानु सताणे ॥१॥

सलोकु मः १ ॥ 
जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥ 
अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥ 
वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥ 
नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥ 
मः १ ॥ 
जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ॥ 
जूठे जूठा मुखि वसै नित नित होइ खुआरु ॥ 
सूचे एहि न आखीअहि बहनि जि पिंडा धोइ ॥ 
सूचे सेई नानका जिन मनि वसिआ सोइ ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
तुरे पलाणे पउण वेग हर रंगी हरम सवारिआ ॥ 
कोठे मंडप माड़ीआ लाइ बैठे करि पासारिआ ॥ 
चीज करनि मनि भावदे हरि बुझनि नाही हारिआ ॥ 
करि फुरमाइसि खाइआ वेखि महलति मरणु विसारिआ ॥ 
जरु आई जोबनि हारिआ ॥१७॥

(छंत) 
जिथै जाय बहै मेरा सतिगुरू सो थानु सुहावा राम राजे ॥ 
गुरसिखी सो थानु भाल्या लै धूरि मुखि लावा ॥ 
गुरसिखा की घाल थाय पई जिन हरि नामु ध्यावा ॥ 
जिन नानकु सतिगुरु पूज्या तिन हरि पूज करावा ॥२॥

सलोकु मः १ ॥ 
जे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइ ॥ 
गोहे अतै लकड़ी अंदरि कीड़ा होइ ॥ 
जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ॥ 
पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥ 
सूतकु किउ करि रखीऐ सूतकु पवै रसोइ ॥ 
नानक सूतकु एव न उतरै गिआनु उतारे धोइ ॥१॥ 
मः १ ॥ 
मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु ॥ 
अखी सूतकु वेखणा पर त्रिअ पर धन रूपु ॥ 
कंनी सूतकु कंनि पै लाइतबारी खाहि ॥ 
नानक हंसा आदमी बधे जम पुरि जाहि ॥२॥ 
मः १ ॥ 
सभो सूतकु भरमु है दूजै लगै जाइ ॥ 
जमणु मरणा हुकमु है भाणै आवै जाइ ॥ 
खाणा पीणा पवित्रु है दितोनु रिजकु स्मबाहि ॥ 
नानक जिन्ही गुरमुखि बुझिआ तिन्हा सूतकु नाहि ॥३॥ 
पउड़ी ॥ 
सतिगुरु वडा करि सालाहीऐ जिसु विचि वडीआ वडिआईआ ॥ 
सहि मेले ता नदरी आईआ ॥ 
जा तिसु भाणा ता मनि वसाईआ ॥ 
करि हुकमु मसतकि हथु धरि विचहु मारि कढीआ बुरिआईआ ॥ 
सहि तुठै नउ निधि पाईआ ॥१८॥

(छंत) 
गुरसिखा मनि हरि प्रीति है हरि नाम हरि तेरी राम राजे ॥ 
करि सेवह पूरा सतिगुरू भुख जाय लह मेरी ॥ 
गुरसिखा की भुख सभ गई तिन पिछै होर खाय घनेरी ॥ 
जन नानक हरि पुन्नु बीज्या फिरि 
तोटि न आवै हरि पुन्न केरी ॥३॥

सलोकु मः १ ॥ 
पहिला सुचा आपि होइ सुचै बैठा आइ ॥ 
सुचे अगै रखिओनु कोइ न भिटिओ जाइ ॥ 
सुचा होइ कै जेविआ लगा पड़णि सलोकु ॥ 
कुहथी जाई सटिआ किसु एहु लगा दोखु ॥ 
अंनु देवता पाणी देवता बैसंतरु 
देवता लूणु पंजवा पाइआ घिरतु ॥ 
ता होआ पाकु पवितु ॥ 
पापी सिउ तनु गडिआ थुका पईआ तितु ॥ 
जितु मुखि नामु न ऊचरहि बिनु नावै रस खाहि ॥ 
नानक एवै जाणीऐ तितु मुखि थुका पाहि ॥१॥ 
मः १ ॥ 
भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु ॥ 
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु ॥ 
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ॥ 
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जमहि राजान ॥ 
भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ ॥ 
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ ॥ 
जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि ॥ 
नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
सभु को आखै आपणा जिसु नाही सो चुणि कढीऐ ॥ 
कीता आपो आपणा आपे ही लेखा संढीऐ ॥ 
जा रहणा नाही ऐतु जगि ता काइतु गारबि हंढीऐ ॥ 
मंदा किसै न आखीऐ पड़ि अखरु एहो बुझीऐ ॥ 
मूरखै नालि न लुझीऐ ॥१९॥

(छंत) 
गुरसिखा मनि वाधाईआ जिन मेरा सतिगुरू डिठा राम राजे ॥ 
कोयी करि गल सुणावै हरि नाम 
की सो लगै गुरसिखा मनि मिठा ॥ 
हरि दरगह गुरसिख पैनाईअह जिना मेरा सतिगुरु तुठा ॥ 
जन नानकु हरि हरि होया हरि हरि मनि वुठा ॥४॥५॥१२॥

सलोकु मः १ ॥ 
नानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइ ॥ 
फिको फिका सदीऐ फिके फिकी सोइ ॥ 
फिका दरगह सटीऐ मुहि थुका फिके पाइ ॥ 
फिका मूरखु आखीऐ पाणा लहै सजाइ ॥१॥ 
मः १ ॥ 
अंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलु ॥ 
अठसठि तीरथ जे नावहि उतरै नाही मैलु ॥ 
जिन्ह पटु अंदरि बाहरि गुदड़ु ते भले संसारि ॥ 
तिन्ह नेहु लगा रब सेती देखन्हे वीचारि ॥ 
रंगि हसहि रंगि रोवहि चुप भी करि जाहि ॥ 
परवाह नाही किसै केरी बाझु सचे नाह ॥ 
दरि वाट उपरि खरचु मंगा जबै देइ त खाहि ॥ 
दीबानु एको कलम एका हमा तुम्हा मेलु ॥ 
दरि लए लेखा पीड़ि छुटै नानका जिउ तेलु ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
आपे ही करणा कीओ कल आपे ही तै धारीऐ ॥ 
देखहि कीता आपणा धरि कची पकी सारीऐ ॥ 
जो आइआ सो चलसी सभु कोई आई वारीऐ ॥ 
जिस के जीअ पराण हहि किउ साहिबु मनहु विसारीऐ ॥ 
आपण हथी आपणा आपे ही काजु सवारीऐ ॥२०॥

(छंत) आसा महला ४ ॥ 
जिना भेट्या मेरा पूरा सतिगुरू 
तिन हरि नामु द्रिड़ावै राम राजे ॥ 
तिस की त्रिसना भुख सभ उतरै जो हरि नामु ध्यावै ॥ 
जो हरि हरि नामु ध्याइदे तिन जमु नेड़ि न आवै ॥ 
जन नानक कउ हरि क्रिपा करि 
नित जपै हरि नामु हरि नामि तरावै ॥१॥

सलोकु महला २ ॥ 
एह किनेही आसकी दूजै लगै जाइ ॥ 
नानक आसकु कांढीऐ सद ही रहै समाइ ॥ 
चंगै चंगा करि मंने मंदै मंदा होइ ॥ 
आसकु एहु न आखीऐ जि लेखै वरतै सोइ ॥१॥ 
महला २ ॥ 
सलामु जबाबु दोवै करे मुंढहु घुथा जाइ ॥ 
नानक दोवै कूड़ीआ थाइ न काई पाइ ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
जितु सेविऐ सुखु पाईऐ सो साहिबु सदा सम्हालीऐ ॥ 
जितु कीता पाईऐ आपणा सा घाल बुरी किउ घालीऐ ॥ 
मंदा मूलि न कीचई दे लमी नदरि निहालीऐ ॥ 
जिउ साहिब नालि न हारीऐ तेवेहा पासा ढालीऐ ॥ 
किछु लाहे उपरि घालीऐ ॥२१॥

(छंत) 
जिनी गुरमुखि नामु ध्याया तिना
 फिरि बिघनु न होयी राम राजे ॥ 
जिनी सतिगुरु पुरखु मनायआ तिन पूजे सभु कोई ॥ 
जिनी सतिगुरु प्यारा सेव्या तिना सुखु सद होई ॥ 
जिना नानकु सतिगुरु भेट्या तिना मिल्या हरि सोई ॥२॥

सलोकु महला २ ॥ 
चाकरु लगै चाकरी नाले गारबु वादु ॥ 
गला करे घणेरीआ खसम न पाए सादु ॥ 
आपु गवाइ सेवा करे ता 
किछु पाए मानु ॥ 
नानक जिस नो लगा तिसु मिलै लगा सो परवानु ॥१॥ 
महला २ ॥ 
जो जीइ होइ सु उगवै मुह का कहिआ वाउ ॥ 
बीजे बिखु मंगै अम्रितु वेखहु एहु निआउ ॥२॥ 
महला २ ॥ 
नालि इआणे दोसती कदे न आवै रासि ॥ 
जेहा जाणै तेहो वरतै वेखहु को निरजासि ॥ 
वसतू अंदरि वसतु समावै दूजी होवै पासि ॥ 
साहिब सेती हुकमु न चलै कही बणै अरदासि ॥ 
कूड़ि कमाणै कूड़ो होवै नानक सिफति विगासि ॥३॥ 
महला २ ॥ 
नालि इआणे दोसती वडारू सिउ नेहु ॥ 
पाणी अंदरि लीक जिउ तिस दा थाउ न थेहु ॥४॥ 
महला २ ॥ 
होइ इआणा करे कमु आणि न सकै रासि ॥ 
जे इक अध चंगी करे दूजी भी वेरासि ॥५॥ 
पउड़ी ॥ 
चाकरु लगै चाकरी जे चलै खसमै भाइ ॥ 
हुरमति तिस नो अगली ओहु वजहु भि दूणा खाइ ॥ 
खसमै करे बराबरी फिरि गैरति अंदरि पाइ ॥ 
वजहु गवाए अगला मुहे मुहि पाणा खाइ ॥ 
जिस दा दिता खावणा तिसु कहीऐ साबासि ॥ 
नानक हुकमु न चलई नालि खसम चलै अरदासि ॥२२॥

(छंत) 
जिना अंतरि गुरमुखि प्रीति है तिन हरि रखणहारा राम राजे ॥ 
तिन की निन्दा कोयी क्या करे जिन हरि नामु प्यारा ॥ 
जिन हरि सेती मनु मान्या सभ दुसट झख मारा ॥ 
जन नानक नामु ध्याया हरि रखणहारा ॥३॥

सलोकु महला २ ॥ 
एह किनेही दाति आपस ते जो पाईऐ ॥ 
नानक सा करमाति साहिब तुठै जो मिलै ॥१॥ 
महला २ ॥ 
एह किनेही चाकरी जितु भउ खसम न जाइ ॥ 
नानक सेवकु काढीऐ जि सेती खसम समाइ ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
नानक अंत न जापन्ही हरि ता के पारावार ॥ 
आपि कराए साखती फिरि आपि कराए मार ॥ 
इकन्हा गली जंजीरीआ इकि तुरी चड़हि बिसीआर ॥ 
आपि कराए करे आपि हउ कै सिउ करी पुकार ॥ 
नानक करणा जिनि कीआ फिरि तिस ही करणी सार ॥२३॥

(छंत) 
हरि जुगु जुगु भगत उपायआ पैज रखदा आया राम राजे ॥ 
हरणाखसु दुसटु हरि मार्या प्रहलादु तरायआ ॥ 
अहंकारिया निन्दका पिठि देइ नामदेउ मुखि लायआ ॥ 
जन नानक ऐसा हरि सेव्या अंति लए छडायआ ॥४॥६॥१३॥२०॥

सलोकु मः १ ॥ 
आपे भांडे साजिअनु आपे पूरणु देइ ॥ 
इकन्ही दुधु समाईऐ इकि चुल्है रहन्हि चड़े ॥ 
इकि निहाली पै सवन्हि इकि उपरि रहनि खड़े ॥ 
तिन्हा सवारे नानका जिन्ह कउ नदरि करे ॥१॥ 
महला २ ॥ 
आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि ॥ 
तिसु विचि जंत उपाइ कै देखै थापि उथापि ॥ 
किस नो कहीऐ नानका सभु किछु आपे आपि ॥२॥ 
पउड़ी ॥ 
वडे कीआ वडिआईआ किछु कहणा कहणु न जाइ ॥ 
सो करता कादर करीमु दे जीआ रिजकु स्मबाहि ॥ 
साई कार कमावणी धुरि छोडी तिंनै पाइ ॥ 
नानक एकी बाहरी होर दूजी नाही जाइ ॥ 
सो करे जि तिसै रजाइ ॥२४॥१॥ सुधु
    

वाहिगुरू जी का खालसा
वाहिगुरू जी की फतेह